RELIGION

कौरव पक्ष का योद्धा द्वंद युद्ध में अभिमन्यु को पराजित नहीं कर सका तब छल और अधर्म का सामना अभिमन्यु को करना पड़ा

रासलीला के बारहवें दिन वीर अभिमन्यु प्रसंग का हुआ मंचन 

न्यूज़ विज़न ।  बक्सर 
नगर के किला मैदान स्थित रामलीला मंच पर रामलीला समिति द्वारा चल रहे 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव में वृंदावन से पधारे श्री नंद नंदन रासलीला एवं रामलीला मंडल के स्वामी श्री करतार बृजवासी के सफल निर्देशन में बारहवें दिन बुधवार को दिन में मंचित कृष्ण लीला के दौरान “वीर अभिमन्यु प्रसंग” का मंचन किया गया। 

पांडवो को पराजित के लिए चक्रव्यूह रचने की योजना पर प्रफ्फुल्लित दुर्योधन
वीर अभिमन्यु प्रसंग के दौरान दिखाया गया की अर्जुन अपनी पत्नी सुभद्रा को चक्रव्यूह रचना के बारे में बताते हैं। तो अभिमन्यु उस समय सुभद्रा के गर्भ में होते है वह व्यूह रचना में अंदर प्रवेश करने की बात को गर्भ में रहते हुए जान लेते हैं। पर सुभद्रा के बीच में ही निद्रामग्न होने से वे व्यूह से बाहर आने की विधि नहीं सुन पाते है। पांडवों को पराजित करने में असफल होने के बाद, कौरवों ने युधिष्ठर को जीवित पकड़ने के लिए इस व्यूह की रचना कर साजिश रचते है। इसके लिए वे अर्जुन को युद्ध के मैदान से दूर भगाते हैं और फिर चक्रव्यूह के नाम से जाना जाने वाला सैन्य निर्माण करते हैं।
 
चक्रव्यूह की योजना बनाते गुरु द्रोण
अर्जुन, कृष्ण, भीष्म और द्रोण जैसे कुछ ही लोग इस व्यूह को तोड़ना जानते हैं, उनके अलावा युद्ध के मैदान में अन्य किसी को भी इसका पूरा ज्ञान नहीं होता है। उस वक्त अभिमन्यु एक 16 वर्ष की अवस्था में किंतु असाधारण योद्धा होते है. वह इस द्वंद्व युद्ध में आते हैं और कौरव पक्ष की व्यूह रचना, जिसे चक्रव्यूह कहा जाता है, के सात में से छह द्वार भेद देते है। यह देखकर जयद्रथ अन्य पांडवों को व्यूह में प्रवेश करने से रोक देता है। इसी का लाभ उठा कर व्यूह के अंतिम चरण में कौरव पक्ष के सभी महारथी युद्ध के मानदंडों को भुलाकर सभी इस बालक पर टूट पड़ते हैं, क्योंकि कोई भी कौरव पक्ष का योद्धा द्वंद युद्ध में अभिमन्यु को पराजित नहीं कर सकता था. ऐसी स्थिति में सभी कौरव महारथी के क्रोध, छल और अधर्म का सामना अभिमन्यु को करना पड़ा। जिस कारण उसने वीरगति प्राप्त की. परंतु फिर भी अभिमन्यु ने अंत तक धर्म का त्याग नहीं किया।

कर्ण ने अंतिम क्षणों में अपने धनुष का पिछला भाग तोड़ दिया। अभिमन्यु को ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर मान लिया। वे बहुत अधिक लज्जित हुए. अंत में अभिमन्यु की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिये अर्जुन ने जयद्रथ के वध की शपथ ली। उक्त लीला का दर्शन कर श्रद्धालु भाव विभोर हो जाते है। लीला के दौरान पुरा परिसर दर्शकों से खचाखच भरा रहता है। 

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