पंचकोशी परिक्रमा के चौथे पड़ाव नुआंव उद्दालक ऋषि के आश्रम पहुंच श्रद्धालुओ ने की परिक्रमा, प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया सत्तू-मूली




न्यूज़ विज़न। बक्सर
पंचकोसी परिक्रमा का काफिला मंगलवार की सुबह भभुअर से चलकर नुआंव स्थित उद्दालक ऋषि के आश्रम पहुंचा। जहां अंजनी सरोवर में स्नान व पूजा-अर्चना के बाद श्रद्धालुओं ने सत्तू-मूली का स्वाद चखा। परिक्रमा में भाग लेने साधु-संतों के अलावा हजारों श्रद्धालु पहुंचे थे। पंचकोसी परिक्रमा यात्रा का पांचवां एवं अंतिम पड़ाव गुरुवार को चरित्रवन में रहेगा। जहां गंगा स्नान व लक्ष्मीनारायण भगवान के दर्शन-पूजन के उपरांत श्रद्धालु लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण करेंगे। तत्पश्चात स्टेशन रोड स्थित बसांव मठिया के पास विश्राम कुंड पर रात गुजारने के साथ परिक्रमा का समापन होगा।








पंचकोसी परिक्रमा के चौथे दिन भगवान श्रीराम एवं लक्ष्मण को सत्तू-मूली खिलाकर महर्षि उद्दालक ने किया था आवभगत



पौराणिक मान्यता के अनुसार पंचकोसी परिक्रमा के चौथे दिन भगवान श्रीराम एवं लक्ष्मण को सत्तू-मूली खिलाकर महर्षि उद्दालक ने उनकी आवभगत की थी। जिसके उपलक्ष्य में पंचकोसी के चौथे पड़ाव नुआंव में सत्तू एवं मूली प्रसाद के रूप में खाया जाता है। इससे पहले भभुअर में रात्रि विश्राम के बाद सुबह श्रद्धालु एवं संत-महात्मा नुआंव पहुंचे। यहां अंजनी सरोवर में स्नान कर हनुमानजी तथा माता अंजनी के मंदिर में जाकर उन्हें मत्था टेके। फिर सत्तू-मूली का प्रसाद खाकर रात्रि विश्राम किए।
बसांव पीठाधीश्वर के सान्निध्य में श्रद्धालुओ के बिच सत्तू-मूली का प्रसाद हुआ वितरण
पंचकोसी परिक्रमा समिति के अध्यक्ष सह बसांव पीठाधीश्वर श्री अच्युत प्रपन्नाचार्यजी महाराज के सान्निध्य में अंजनी सरोवर की परिक्रमा कर बसांव मठ के संतों द्वारा सत्तू-मूली प्रसाद का वितरण किया गया। इस अवसर पर वहां कथा-प्रवचन का आयोजन भी हुआ। जिसमें परिक्रमा में शामिल संतो ने कथा के माध्यम से महर्षि उद्दालक एवं बाल हनुमान तथा माता अंजनी के जीवन चरित्र का वर्णन किया। इस दौरान सुदर्शनाचार्य जी महाराज, रोहतास गोयल, डॉ रामनाथ ओझा, सूबेदार पांडेय, राजीव पांडेय, महावीर वर्मा समेत अनेको लोग शामिल रहे।
उद्दालक आश्रम के समीप राम भक्त हनुमान की माता अंजनी अपने पुत्र के साथ रहती थीं
कथा सुनाते हुए सुदर्शनाचार्य उर्फ़ भोला बाबा ने कहा की नुआंव स्थित उद्दालक आश्रम के समीप राम भक्त हनुमान की माता अंजनी अपने पुत्र के साथ रहती थीं। जहां बचपन में हनुमानजी खेला करते थे। अंजनी के निवास के चलते ही यहां का मौजूद सरोवर अंजनी के नाम से विख्यात हो गया। उन गाथाओं को याद दिलाते हुए वहां एक मंदिर का निर्माण कराया गया है। जिसमें माता अंजनी के साथ हनुमान जी विराजमान हैं। इसकी चर्चा साकेतवासी पूज्य संत श्रीनारायणदास जी भक्तमाली मामाजी द्वारा रचित पुस्तक में भी की गई है।
मंगलवार की शाम से ही चरित्रवन पहुंचने लगे है श्रद्धालु
पंचकोसी परिक्रमा के पांचवें दिन लिट्टी-चोखा के मेला को लेकर एक दिन पूर्व मंगलवार की शाम ढलते ही श्रद्धालु चरित्रवन पहुंचने लगे। जिससे शहर स्थित किला मैदान श्रद्धालुओं से पट गया। पंचकोसी के अवसर पर लिट्टी-चोखा का प्रसाद बनाने व खाने के लिए एक दिन पूर्व ही दूर-दराज से लोगों के पहुंचने का सिलसिला जारी हो गया था। इसको लेकर स्टेशन पर भी भारी भीड़ लगी रही। स्टेशन पर आने वाली हर ट्रेन श्रद्धालुओं से भरी आ रही थी। जिसे यहां रूकते ही प्लेटफार्म पर खचाखच भीड़ हो जाती थी। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ट्रेन से आने वाले श्रद्धालुओं का कारवां देर रात तक किला मैदान में पहुंचता रहा।
उद्दालक आश्रम की परिक्रमा व रात्रि विश्राम करने से श्रद्धालुओं की दरिद्रता समाप्त हो जाती है
पंचकोसी परिक्रमा के दौरान नुआंव स्थित उद्दालक आश्रम की परिक्रमा व रात्रि विश्राम करने से श्रद्धालुओं की दरिद्रता समाप्त हो जाती है। पौराणिक गाथाओं का उल्लेख करते हुए कथा वाचकों ने कहा कि माता लक्ष्मी की बड़ी बहन का नाम दरिद्रा है। उसके दरिद्रता एवं निर्धनता के भय के चलते दरिद्रा से कोई विवाह करना नहीं चाहता था। परंतु भगवान विष्णु की इच्छा पर उनके परम भक्त महर्षि उद्दालक, माता लक्ष्मी की बड़ी बहन दरिद्रा से शादी करने पर राजी हो गए। समझने की बात यह है कि इससे पहले महर्षि ने अहंकार को श्री नारायण के चरणों में समर्पित कर दिया था। जिसके चलते उनके साथ दरिद्रा के रहने पर भी दरिद्रता फटक नहीं पाती थी और अंतत: दरिद्रा को उद्दालक ऋषि को छोड़कर भगवान के पास जाना पड़ गया।
अतिक्रमण के चलते अंजनी सरोवर का अस्तित्व खतरे में
पंचकोसी परिक्रमा के चौथे विश्राम स्थल नुआंव में आयोजित होने वाले मेला के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है। समय रहते यदि प्रशासन सचेत नही हुआ तो वह दिन दूर नहीं जब नुआंव पंचकोसी मेला केवल यादों में सिमटकर रह जायेगा। इसका कारण अंजनी सरोवर का अतिक्रमण बताया जाता है। अतिक्रमण के चलते न केवल इस पौराणिक धरोहर का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है बल्कि, प्रति वर्ष होने वाला सरोवर का परिक्रमा भी संचालित ढंग से नहीं हो पा रहा है। इस संबंध में पंचकोसी परिक्रमा समिति के सचिव डॉ. रामनाथ ओझा ने बताया कि रास्ते के अतिक्रमण के कारण मेलार्थी एवं संत समाज परिक्रमा की रस्म अदायगी नहीं कर सके। जबकि इस समस्या से प्रशासन को पूर्व में ही अवगत करा दिया गया था। साथ ही प्रशासन द्वारा इस संबंध में आश्वासन भी दिया गया था। अतिक्रमण का सिलसिला अगर इसी प्रकार जारी रहा तो वह दिन दूर नही जब पंचकोसी यात्रा मेला के चौथे पड़ाव का अस्तित्व ही मिट जाएगा।

