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अहिल्याबाई होलकर ने प्रमुख तीर्थ स्थलों का पुनर्निर्माण, सहित मानव सेवा के लिए आज भी चिरस्मरणीय है : डॉ नमिता

राष्ट्र सेविका समिति ने लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी जन्म वर्ष पर संगोष्ठी का हुआ आयोजन 

न्यूज़ विज़न।  बक्सर 

मंगलवार को राष्ट्र सेविका समिति ने लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी जन्म वर्ष पर नगर के एमपी हाई स्कूल परिसर में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता राष्ट्र सेविका समिति की विभाग कार्यवाही का ओम ज्योति भगत ने किया एवं मंच संचालन वंदना भगत ने किया। कार्यक्रम का उद्घाटन एमपी हाई स्कूल के प्रधानाचार्य डॉक्टर विजय कुमार मिश्रा एवं राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका डॉ नमिता कुमारी एवं प्रांत संपर्क प्रमुख उर्मिला जी ने विधिवत संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर सामूहिक गीत गाकर अतिथियों का स्वागत किया गया। साथ ही अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया।

 

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉ नमिता ने कहा कि अहिल्याबाई होलकर ने अपने राज्य की सीमा से बाहर जाकर सम्पूर्ण भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों का पुनर्निर्माण,सहित मानव सेवा के लिए अनेकों कार्य की जो आज भी चिरस्मरणीय है। अहिल्याबाई का जन्म महाराष्ट्र के चौड़ी गांव में हुआ था जो अहमदनगर जिला में पड़ता है जिसे आज अहिल्यानगर के नाम से जाना जाता है।उनके पिता मानको  शिंदे थे जो क्षेत्र के पाटिल थे। उनका परिवार सम्मानित मराठा परिवार था उनकी शादी दस बारह वर्ष की आयु में हो गई थी। इनके विवाह भी बड़े ही रोचक तरीके से हुआ था राजा मल्हार राव होलकर पुणे जा रहे थे चौड़ी गांव में विश्राम किया उसी दरम्यान पता चला कि अहिल्याबाई होलकर बहुत ही सेवा कार्य कर रही है उनके द्वारा सेवा कार्यों से प्रभावित होकर राजा ने उनके पिता से अपने पुत्र के लिए हाथ मांग लिया था विवाह के बाद 29 वर्ष की आयु में विधवा हो गई। मालवा का शासन का बागडोर संभालना पड़ा। उन्होंने महेश्वर को राजधानी बनाकर 31 मई 1725 से 13 अगस्त 1795 तक शासन किया। अपने शासन काल में आत्मप्रतिष्ठा के झूठे मोह का त्याग कर सदा न्याय करने का आजीवन प्रयत्न करती रही।

उन्होंने अपने राज्य से बाहर के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों, घाट, कुओं, सड़क मार्ग, भूखों के लिए अन्न क्षेत्र, प्याऊ, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति सहित अनेकों सेवा कार्य की जो उल्लेखनीय है। काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण भी उनके द्वारा करवाया गया था। इनके द्वारा किए गए कार्यों से जनता इतनी प्रसन्न हो गई थी कि महारानी अहिल्याबाई को देवी समझने लगी। साक्षात ईश्वर मानने लगी। अहिल्याबाई होलकर इतनी न्याय प्रिय थी कि जनता के कष्ट को सुनने के घंटा स्थान बना रखी थी। जहा जनता का फरियाद सुनती थी और न्याय सुनाती थी। एक दिन की घटना है कि उनका पुत्र अपने रथ से बछड़ा को रौंद दिया, बछड़े कि मां गाय माता ने घंटा स्थल पर पहुंच कर घंटा बजा दिया, गाय के मालिक को बुलाकर वाक्या समझने का प्रयास कि तब गाय के मालिक ने बताया कि आपके पुत्र द्वारा रथ से बछड़े को रौंद कर मार डाला गया है।महारानी ने तुरंत अपने पतोहू को बुलाकर सारी बातों से अवगत करा कर उसी प्रकार से मौत की सजा देने का निर्णय सुनाया। स्वयं रथ पर सवार होकर पुत्र को मौत के घाट उतारने के लिए रथ को चलाने लगी तभी गौ माता ने अपनी ममता प्रदर्शित करते हुए महारानी के पुत्र के समक्ष अड़ गई। आज भी इंदौर में अड़ स्थान है। उन्होंने कई कार्य किए जिसमे महिला शिक्षा पर खासा जोर दिया तमाम परेशानियों के बाद भी नारी शक्ति का उपयोग कर शासन व्यवस्था दुरुस्त कर न्याय दिलाने का काम किया जो प्रशंसनीय है। आज भी महारानी अहिल्याबाई होलकर महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत है।

संगोष्ठी में स्कूल विद्यालय की छात्राएं एवं आचार्य आदित्य कुमार, दीपक रंजन, पुरुषोत्तम पांडे, अशोक कुमार, सुमन कुमार, गोविंद कुमार, अरविंद, रविंदर, डॉक्टर जी कुमारी, इंदु उपाध्याय, बबीता, सोनी, शिरातो देवी, नुजहत फातिमा, एकता पांडे, मीनाक्षी समेत सैकड़ो महिलाये उपस्थित रही।

 

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